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सुनील सिंह बिस्कोमॉन के नए अध्यक्ष बने

सुनील सिंह जिन्हें बिस्कोमॉन के अध्यक्ष के पद से एक साल पहले हटा दिया गया था उन्होंने  शुक्रवार को बिहार में सहकारी चुनाव में भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज़ की है।

उन्हें 81 वोट मिले और विजेता  घोषित किए गए। राज्य सरकार ने बिस्कोमॉन बोर्ड को बर्खास्त करने के बाद बतौर व्यवस्थापक अमिता पॉल को नियुक्त किया था। श्रीमती पॉल मुख्य सचिव के रैंक की एक अधिकारी है, जो एक सहकारी संस्था के रूप में बिस्कोमॉन के महत्व को रेखांकित करती है। यह उल्लेखनीय है कि विख्यात सहकारी नेता तपेश्वर सिंह ने भी बिस्कोमॉन के परिसर से ही सहकारिता के क्षेत्र में जीवन की शुरुआत की थी।

शुक्रवार को बिस्कोमॉन बोर्ड का चुनाव हुआ जिसमें चुने जाने वाले लोगों में जितेंदर सिंह, रामजान अंसारी, राम केलवार, रघुवंश नारायण सिंह, नरेंद्र शर्मा, गोपाल गिरि, राम विष्णु सिंह यादव और खगरिया से मंजू कुमारी शामिल हैं।

हालांकि यह आसान लड़ाई नहीं थी। इसमें रजिस्ट्रार की अदालत से लेकर उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट तक  दस से अधिक मुकदमें दर्ज़ किए गए थे। लेकिन अपनी दृढ़ता के कारण सिंह विजयी रहे। 

परिणाम के बाद भारतीय सहकारिता से बात करते हुए श्री सिंह ने कहा कि एक साल पहले विकास परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया था और शुरु से ही सरकार द्वारा इसे ठप करने की कोशिशें जारी थी। अब एक बार फिर से इसे शुरू किया जाएगा। राज्य के कृषि क्षेत्र के लिए बिस्कोमॉन को प्रभावी बनाना उनका पहला लक्ष्य होगा, उन्होंने कहा।

“सरकार ने 3 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करके राज्य के मंत्रियों, सांसदों, स्थानीय क्षेत्र के विधायकों और जिला मजिस्ट्रेट को मुझको रोकने के लिए तैनात किया था लेकिन वह असफल रही। इससे पहले यह लड़ाई सुनील सिंह बनाम राज्य सहकारी मंत्री रामधार सिंह के बीच थी, लेकिन इस बार लड़ाई सुनील सिंह बनाम पूरी सरकारी मशीनरी के बीच थी, उन्होंने कहा।

बिस्कोमॉन बोर्ड के बर्खास्त होने के बाद बिस्कोमॉन की राजनीति निम्नतम स्थिति में चली गई थी। सहकारिता मंत्री रामधार सिंह के खिलाफ एक पुराना मामला खोजकर निकाला गया जिसके कारण उसे जेल  जाने के साथ अपनी नौकरी भी खोनी पड़ी।

विजेता श्री सुनील सिंह को बधाई देते हुए  श्री विशाल सिंह ने भारतीय सहकारिता से कहा कि उनके (सुनील सिंह) द्वारा इस चुनाव को आरजेडी बनाम जेडीयू लड़ाई में परिवर्तित करना दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने जितेंदर सिंह के मामले को संदर्भित करते हुए कहा कि वह एक जेडीयू विधायक है, लेकिन सुनील सिंह के पैनल में है।

हालांकि विशाल ने अच्छी टक्कर दी और उन्हें 57 वोट हासिल हुए  जिसे बिहार में सहकारी दृश्य पर नज़र रखनेवाले एक विश्वसनीय प्रदर्शन के रूप में देखते है।

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